वक्त
गली के मोड़ पे वो खड़ा था
शायद अपनी ही किसी सोच में पड़ा था।
मैने पूछा, क्यों भाई बात क्या है
तुम्हारे यहां खड़े होने का ध्येय क्या है?
कुछ भी न कह उसने मुझे घूर के देखा
नज़रें इधर उधर फिरा कर दूर तक देखा
थोड़ा पास आकर बोला-
हर तरफ भागमभाग, दौड़-धूप और है मारामारी
गली के किसी कोने पर
सिसक रही मानवता बेचारी
लूट, खसोट, बेईमानी, चोरी और डकैती
ये बन गयी है आज अराजकता की कसौटी।
मुफ़्गखोरी की आदत कहां लग गई
भुजबल पर जिन्हें गर्व था अपने
चंद प्रलोभनों से बिकने लगे उनके सपने
इस देश की हालत ये क्या हो गयी
भुजबल पर जिन्हें गर्व था अपने
चंद प्रलोभनों से बिकने लगे उनके सपने
इस देश की हालत ये क्या हो गयी
इंसान की इंसानियत जाने कहाँ खो गयी।
मैने कहा क्यों परेशान हो तुम
देख कर ये सब क्यों हैरान हो तुम।
उसने कहा- मैं वक्त हूँ
वादे का बड़ा सख्त हूँ,
सदियों पहले भी मैं आया था
तब भी सब कुछ ऐसा ही पाया था
फर्क सिर्फ इतना है-
तब लूट रहा कोई ग़ैर था
आज लूट रहा कोई अपना है।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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