एक व्यंग्य
महंगाई
काफी समय बाद मैं बाजार गया
सोचा कुछ खरीदारी ही कर लूं
दुकानदार से चीनी का भाव पूछा
४५ रुपये किलो , उसने बोला
हम तो चीनी के उत्पादन में सबसे आगे हैं
फिर इसके दाम क्यों इतने भागे हैं |
साहब जब से जीवन में कड़वाहट बढ़ गया
तब से चीनी का भाव भी बढ़ गया
संबंधों में वो मिठास नहीं रह गया
इसलिए चीनी का ही सहारा रह गया |
अच्छा नमक का भाव क्या है- मैंने पूछा
वो तो चीनी से भी महंगा हो गया
क्यों - मैंने पूछा
चीनी से मिठास ज्यादा हुई तो कीड़े पद गए
इसलिए नमक की जरूरत हुई -
तो उसके भी भाव बढ़ गए|
साहब भाव क्यों पूछते हो
अब तो बाजार में पानी भी बिकता है |
पर उसपर तो सबका अधिकार है-मैंने बोला
ऐसी बात तो सोचना भी बेकार है
हर चीज़ पर टैक्स की भरमार है
अब तो ज़िंदगी भी डिब्बाबंद हो गयी
क्यूंकि महंगाई सुरसा जैसी हो गयी ||
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