महंगाई/ व्यंग्य

  एक व्यंग्य

          महंगाई               


काफी समय बाद मैं बाजार गया 
सोचा कुछ खरीदारी ही कर लूं 
दुकानदार से चीनी का भाव पूछा 
४५ रुपये किलो , उसने बोला 
हम तो चीनी के उत्पादन में सबसे आगे हैं 
फिर इसके दाम क्यों इतने भागे हैं | 
साहब जब से जीवन में कड़वाहट बढ़ गया 
तब से चीनी का भाव भी बढ़ गया 
संबंधों में वो मिठास नहीं रह गया 
इसलिए चीनी का ही सहारा रह गया | 

अच्छा नमक का भाव क्या है- मैंने पूछा 
वो तो चीनी से भी महंगा हो गया 
क्यों - मैंने पूछा 
चीनी से मिठास ज्यादा हुई तो कीड़े पद गए 
इसलिए नमक की जरूरत हुई - 
तो उसके भी भाव बढ़ गए| 

साहब भाव क्यों पूछते हो 
अब तो बाजार में पानी भी बिकता है | 
पर उसपर तो सबका अधिकार है-मैंने बोला 
ऐसी बात तो सोचना भी बेकार है 
हर चीज़ पर टैक्स की भरमार है 
अब तो ज़िंदगी भी डिब्बाबंद हो गयी 
क्यूंकि महंगाई सुरसा जैसी हो गयी || 

अजय कुमार पाण्डेय 





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