भटकाव
दूर तलाक फैला हुआ आकाश
आभास देता है,
असीमित है दुनिया |
पर पृथ्वी तो गोल है
इसका भी एक छोर है |
क्या सचमुच आकाश असीमित है
दूर क्षितिज नजर आता है
लागत है अंत है दुनिया का |
पर वो तो भ्रम है ,
क्या हम भ्रम में जी रहे हैं ?
जीवन भी तो भ्रम है , एक जाल है
संबंधों का , जिसमें हम उलझे हैं |
नित नए सम्बन्ध बनते हैं, बिगड़ते हैं
फिर भी हम भटकते हैं ,
सुकून की तलाश में ,
सुकून नज़र आता है
क्षितिज की तरह
दीखता है, पर महसूस नहीं होता ,
हर वक्त कमी महसूस होती है |
आकाश तो अंतहीन है ,
पर जीवन का अंत है ,
फिर क्यों है -
ये अंतहीन भटकाव ||
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