एहसास
कब, कहाँ, कैसे क्या हो जाए
कोई भी न जान पाए
ज़िंदगी का ये फलसफा कौन समझाए |
ज़िंदगी है , होता है, चलता है
बस यही जान पाए |
समझने की कितनी ही कोशिशें की
पर समझ न पाए
क्यूँ होता है ऐसा
कोई तो बतलाये |
आज जो है कल वो नहीं
कल जो हुआ आज भी होगा
ऐसी आस नहीं
आगे जो होगा अच्छा होगा
है विश्वास यही |
हमें यूँ ही नहीं रुकना है
मंज़िल दर मंज़िल दर आगे बढ़ना है
हर रस्ते को छोटा करना है
हर मुश्किल आसान करना है |
दूर है मंज़िल,कठिन है डगर
टेढ़े मेढ़े रास्तों पर चलना है मगर
मिलेगी मंज़िल है यही विश्वास
क्यूंकि हर पल होता है यही एहसास ||
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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