क्या फायदा
दिल की दिल में दबा ली तो क्या फायदा
जो कह ही सके न तो क्या फायदा
बात जो दब के रह गयी तेरे मेरे दरमयान
बाद उसको बताने का क्या फायदा।।
बात दिल में जो तेरे थी कह न सके
साथ वालों के भावों को पढ़ न सके
सत्य बनकर के जब भाव आहत किये
फिर दर्द से छटपटाने का क्या फायदा।।
स्वनिर्मित उपालंभ से जो घायल हुए
दूर हटने लगे जो भी चाहत हुए
अपनी त्रुटियों का खुद बोझ जो सह न सके
बाद लांछन लगाने का क्या फायदा।।
अपने ही मन में जब पाप बढ़ने लगे
स्वार्थ, लालच व संताप बढ़ने लगे
मुक्ति की इससे राह जब न मिली
फिर अकारण ही क्रंदन का क्या फायदा।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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