भूलना आसान नहीं
मुसाफिर हो गयी ज़िंदगी तेरे जाने के बाद
भटक रहा हूँ आज भी मंज़िल की तलाश में |
कहाँ तो मेरी सूरत से भी नफरत होती थी कभी
सुना अब मेरे ख्वाब का भी इंतज़ार है तुम्हें |
कोई बात तो होगी मुझमें के न भुला पाए मुझको
चलो खुद को ही सजा दी, हर बात भुला के तेरी |
कशिश बाकी है आज भी, जानकर भूल गए हैं सब
तेरे दिए ज़ख्म सारे फूल हो गए हैं अब |
खैरियत की खबर से ही तेरे खुश हो लेता हूँ मैं
कैसे कह दूँ की फ़िक्र नहीं है तेरी मुझे |
लम्हों के खता की सजा मिली है मझे
तेरे ज़िक्र तक का हक़ खो चुका हूँ मैं |
अब यही ख्वाहिश है-सुनूं के सुकून मिल गया तुझको
मैं भी तो सुकून से निकल सकूं सुकून की तलाश में ||
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