होइ कैसे अब गुज़ारा
नगरी नगरी गली चौबारा
सगरो गूंजे एक्कई नारा
भूख गरीबी अउर अशिक्षा
से होइ कैसे अब छुटकारा।
नगरी नगरी........
पढ़ाई लिखाई सब महंग भयल हौ
दवा दवाई महंग भयल
टूटी फूटी खपरैल से झांके
टूटी फूटी खपरैल से झांके
एक तिहाई जन बेचारा।
अइसन ही जो हाल रही त
कैसे होइ अब गुज़ारा।।
नगरी नगरी....…...
खेती में अब मोल नही हौ
विह्वल हौ हलधर बेचारा
रोज़ बज़ारे जाइ जाई के
लौटत हौ ख़लिहर बेचारा
लरिका और मेहरारू ताकें
लरिका और मेहरारू ताकें
मारि के आपन मन के सारा
छोटकी भी अब बड़ी हो गयल
लाई कहां से दहेज बेचारा,
अइसन ही जो हाल रही तो
होई कैसे अब गुज़ारा।।
नगरी नगरी गली चौबारा......।।
सीमा पे जो जवान डटल बा
मन में ओकरे खयाल इहे बा
जाने कौन आखिरी पल हो
मन मे हरदम सवाल इहे बा
लरिका-बच्चा और मेहरारू
के गुजरत होइ कइसे दिन सारा
माई बाबू के चिंता में
हियवा हुलके रहि रहि सारा।।
नगरी नगरी........।।
चुन चुन के जेकरा भी भेजलीं
बहुधा देखलीं वोट के मारा
जाति धरम के नारन से
गूँजत हौ अब संसद सारा
मूल भूत सुविधा के चर्चा
मूल भूत सुविधा के चर्चा
लुकाई गयल राजनीति में सारा
सड़क किनारे कथरी गुदरी में
बइठल जइसे भारत सारा
अइसन ही जो हाल रही तो
होइ कइसे अब गुज़ारा।
नगरी नगरी................।।
अपने सुविधा बदे एक होइ जइहें
भटकई जनता चाहे बिना सहारा
दिल्ली अब कुछ अइसन करता
निफिकर हो जाये जनता सारा
कहे अजय अब सोचि समझि के
चुनिहा तू सरकार दोबारा।।
नगरी नगरी गली चौबारा
गूंजई सगरो एक्कई नारा
भूख गरीबी अउर अशिक्षा
से होइ कइसे अब गुज़ारा।।
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