कैसे भुला पाओगे

   कैसे भुला पाओगे           


माना मेरी ख़ता 
माफी लायक नही
पर ख़ता क्या थी
कभी तो बतला देते
मैं भी समझ जाता
यदि मुझे समझा देते।।

तुमने तो हमेशा 
मुझे छोड़ दोगे कहा
जो वही बात 
एक बार मैंने कही
तो बुरा मान गए।

इक वो भी दौर था
जब मेरी खामोशी 
भी समझ जाते थे
एक ये दौर है
मेरी आवाज भी 
सुनाई नही देती।

यूँ तो मैंने कभी
तुम्हारा बुरा नही चाहा
शायद यही बात मैं तुम्हें
कभी समझा नही पाया।

हम दोनों ही डरते रहे
एक दूजे से बात करने से
कहीं किसी बात पर
फिर से दिल न दुःख जाए।

जाना ही था तो 
कुछ तो बता जाते
झूठा ही सही कोई 
इल्ज़ाम ही लगा जाते
अब क्या बताऊँ
सबको तेरे जाने का सबब
मेरे लिए न सही इक बार 
ज़माने के लिए ही आ जाते।

तुम्हे चाहना
माना मेरी ख़ता ही सही
इक बार इस ख़ता की
सज़ा देने के लिए ही आ जाते।

अपनी हस्ती ही क्या है
 इस ज़माने में
इक ख्वाब हूँ
आंख खुलते ही 
बिखर जाऊंगा।

मेरी गीतों को इतनी
शिद्दत से न पढा करो
गर समझ गए तो
कभी मुझे भुला न पाओगे।।

अजय कुमार पाण्डेय

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