राह मैखाने की
अभी अभी तो आया हूँ
तुम पूछते हो जाना कहां है
तलाश में जिसकी भटक रही हैं आंखें
तुम्ही बताओ वो मैखाना कहां है।।
हर रास्ते पे पत्थरों की दीवारें
रोकती हैं राह राहगीरों की
आओ मिलकर हटाएं उन पत्थरों को
शायद मिल जाये राह मैखाने की।।
न तुम मुझसे मेरी जात पूछो
न मैं तुमसे तुम्हारा धरम पूछूं
चलो बनकर अजनबी ढूंढें
शायद मिल जाये राह मैखाने की।।
मैं जानता हूँ कि तू भी प्यास है
तू जनता है कि मैं भी प्यासा हूँ
चलो संकोच की इस दीवार को लांघ जाएं
शायद मिल जाये राह मैखाने की।।
आरजूओं का साथी बनने
चलो मंदिरों-दरगाहों पर हो आएं
किसी बहते आंसू को पोंछने से
शायद मिल जाये राह मैखाने की।।
ज़माना हरदम मुझे साकी बुलाता रहा
फिर भी मेरे हिस्से कोई पैमाना नही आया
ऐ खुदा न बंद करना दरवाज़ा-ए-दुनिया
जब तलक मिल न जाये राह मैखाने की।।
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