कुछ जतन करो

  कुछ जतन करो


जिसको देखो विशृंखल है
व्यथा में अपनी भाई
एक से अब खर्च चले न 
दोनों करे कमाई।

ला सको तो वापस ला दो
रामराज्य को भाई
भ्र्ष्टाचार दूर हो जाये
कम हो जाये महंगाई।।

घपले और घोटालों पर
होंगी बातें तब तक
रोकथाम के लिए कड़े कदम
उठें न इन पर जब तक।।

परेशान है जनता इससे
ये बनी बड़ी बीमारी
अब तो कोई जतन करो
मिट जाए हाहाकारी।।

गंगा कब तक तरसेगी
तरसेंगी कब तक नदियां सारी
अरबों खरबों खर्च हो चुके
दूर हुई न ये महामारी।

ये केवल सरकार की नही 
है ये सबकी जिम्मेदारी
मोक्षदायिनी निर्मल हुई जो
तो ही होंगे सब संस्कारी।।

दिल मे शोले पनप रहे हैं
देख के ये मक्कारी
लिपट तिरंगे में ताबूतों को
देख बिलखती मातृभूमि हमारी।

माना कि हम सत्य 
और अहीसा के हैं पुजारी
पर राष्ट्र सुरक्षा की खातिर
कुछ भी दे सकते हैं कुर्बानी।

अब भी वक्त है सुधर जाओ तुम
छोड़ो ये सब मक्कारी
हम अपनी पर आ बैठे तो
मिट जाएगी हस्ती तुम्हारी।।

माना चरित्र और मर्यादा की
हूँ मैं मूरत संस्कारी
पर समाज के प्रति क्या
तुम्हारी नही है कुछ जिम्मेदारी।

छींटाकशी और दुर्व्यहारों से 
पटा हुआ है अंबर
गर समाज को सबल बनाना है
तो तोड़ो सारे आडम्बर।

गर नारी को सम्मान नही तो
मिट जाएगी संस्कृति सारी
नहीं कहीं नैतिकता होगी
मिट जाएगी हस्ती सारी।।

धरा का सीना चीर चीर कर
फसलें खूब उगाईं
कई रात खुद भूखे रहकर
सबकी भूख मिटाई।

चाहे दुष्कर मौसम हो
या हो आपदा आसमानी
कड़क दुपहरी हो या सर्दी
करता रहा खलिहानी।

ज़रा ध्यान हमपर भी दे दो
सुन लो दिल्ली वालों
अगर किसानी खतम हुई तो
क्या खाओगे बोलो।

ऐसे हालातों में रह जायेगी 
धरी तरक्की तुम्हारी
इसीलिए कहता हूँ सोचो
खतम हो ये हाहाकारी।।

अब किससे फ़रियाद करें
तुम ही बोलो सारे
जब संसद में चुनकर बैठे हैं
प्रतिपालक सारे।

ऐसी कोई नीति बनाओ
हो दूर अराजकता सारी
राष्ट्र ये खुशहाल बने
हर्षित हों सब नर नारी।।

अजय कुमार पाण्डेय

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