तुम वतन हो मेरे
ज्ञान गीता का है
ध्यान गौतम का है
धैर्य धरती सा है
मान अंबर सा है
तुम सपन हो मेरे
तुम रतन हो मेरे
तुम वतन हो मेरे
तुम वतन हो मेरे।।
पांव सागर पखारे
हुस्न सावन सँवारे
चन्द्रमा कर रहा सिर पे अठखेलियाँ
गंगा की धार से मान तेरा बढ़ा।
तुम वतन हो मेरे
तुम वतन हो मेरे।।
नभ को छूता शिखर
शान से है खड़ा
तेरे आलिंगन में मैं
शान से पल रहा
तुम ही मंदिर मेरे
मैं पुजारी तेरा।
तुम वतन हो मेरे
तुम वतन हो मेरे।।
राम हो तुम मेरे
श्याम भी हो मेरे
तुम ही पूजा की थाली
मैं सजाऊँ जिसे।
तुम वतन हो मेरे
तुम वतन हो मेरे।।
तुम ही काशी के तुलसी
रसखान वृंदावन के
तुम ही विदुर नीति हो
तुम ही हो चाणक्य मेरे।
तुम वतन हो मेरे
तुम वतन हो मेरे।।
तुम ही बचपन मेरा
तुम जवानी मेरी
तुम ही जीवन मेरा
तुम ही श्वासें मेरी
कुर्बान जो हुआ मैं तेरी राह में
तो होगी सफल ज़िंदगानी मेरी।
तुम वतन हो मेरे
तुम वतन हो मेरे।।
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