प्यार की इक निशानी
फिर नयन के द्वार ठहरी मौन व्याकुल बन कहानी
ढूँढता है दिल जिसे वो प्यार की है इक निशानी।
भीड़ है लेकिन हृदय का कोर सूना है कहीं पर,
श्वास की हर मौन गति में गीत सूना है कहीं पर।
बाँवरा मन ढूँढता है रिक्तियों में राजधानी,
फिर नयन के द्वार ठहरी मौन व्याकुल बन कहानी।
जाने किन-किन रास्तों पे शूल बन बैठी हवाएँ,
ढूँढती है शून्य में खो चाँदनी अपनी दिशाएँ।
फिर हुईं रातें कलंकित घुट रही है रात रानी,
फिर नयन के द्वार ठहरी मौन व्याकुल बन कहानी।
लालसा इतनी जटिल थी काँच को कंचन बनाया,
हर महकती चीज को गात का चंदन बताया।
जब हुईं साँसें सशंकित तब किया क्या सावधानी,
फिर नयन के द्वार ठहरी मौन व्याकुल बन कहानी।
रिक्तियों के भाव ले कब तक हृदय जीता रहेगा,
अंक रीता है यहाँ जो कब तलक रीता रहेगा।
कब तलक अंतस करेगी शून्यता की बागवानी,
फिर नयन के द्वार ठहरी मौन व्याकुल बन कहानी।
है प्रतीक्षा उस घड़ी की आगमन हमसे कहेगी,
द्वार हो आहट तिहारी आचमन साँसें करेंगी।
कब तलक कोरी रहेगी पृष्ठ पे दे दो निशानी,
फिर नयन के द्वार ठहरी मौन व्याकुल बन कहानी।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
12 जून, 2025
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