गीत भरी आँख का
जिसकी खुशियों के आगे अँधेरा हुआ।
एक उम्मीद का दीप लेकर चले,
स्वप्न के गीत पलकों में जैसे पले।
एक आँधी कहीं से आ ऐसी चली,
लुट गईं चाहतें जो थीं मन में पलीं।
आह कैसे लिखूँ उस घुटी चीख का,
जिसकी साँसों के आगे अँधेरा हुआ।
चल रही थी पवन मस्त थी चाहतें,
दिल के आँगन में होने लगी राहतें।
फिर अचानक कहाँ से अँधेरा हुआ,
लुट गयी रोशनी गुम सवेरा हुआ।
चीख कैसे लिखूँ उस घुटी सांझ का,
जिसके ढलने से पहले अँधेरा हुआ।
अब तो सूनी हैं गलियाँ नहीं राह है,
लुट गयी चाँदनी ना बची चाह है।
शब्द पलकों से आकर छलकने लगे,
गीत अधरों पे खोकर बहकने लगे।
भाव कैसे लिखूँ चाँद की प्रीत का,
जिसके सजने से पहले अँधेरा हुआ।
आज हैं हम यहाँ कल न जाने कहाँ,
हम रहेंगे कहीं तुम रहोगे कहाँ।
एक लम्हा हूँ मैं तो गुजर जाऊँगा,
राह में, याद में मैं न फिर आऊँगा।
गीत कैसे लिखूँ वक्त की रीत का,
रीत लिखने से पहले अँधेरा हुआ।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
25 अप्रैल, 2025
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