रीत गया शब्दों का घट पर हो न पाई बात

रीत गया शब्दों का घट पर हो न पाई बात


दिन बैरागी हुए हमारे बैरन हो गयी रात,
रीत गया शब्दों का घट पर हो न पाई बात।

थका हुआ मन लेकर लौटे दिन के मौन उजाले में,
सपनों का घट खाली-खाली नयनों के दो प्याले में।
पलकों की चौखट पर ठहरी यादों की बारात,
रीत गया शब्दों का घट पर हो न पाई बात।

बात अधूरी रहे अगर तो यादों का कुछ मोल नहीं,
पूरे जो ना हो पायें तो वादों का कुछ मोल नहीं।
यादों के सूने में खोये सब वादों के अनुपात,
रीत गया शब्दों का घट पर हो न पाई बात।

उम्र सिसकती रही रात भर दिन सारे बंजारे,
दूर-दूर तक मरुथल फैला किसको हृदय पुकारे।
सारी रात छुपाते बीती ऐसी थी बरसात
रीत गया शब्दों का घट पर हो न पाई बात

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      02 अगस्त, 2024

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