खेल अभी भी जारी है

खेल अभी भी जारी है

जिसने सबका मन भरमाया कुछ और न दुनियादारी है,
द्वापर के चौसर का साथी वो खेल अभी भी जारी है।

दो रंगे पासे हाथों में ले अब भी शकुनी घूम रहा,
स्वार्थ प्रमुखता ले भावों में हर द्वार-द्वार को चूम रहा।
कुटिल भावना अंतस में भर हाथों में लिए कटारी है,
द्वापर के चौसर का साथी वो खेल अभी भी जारी है।

गली मोड़ हर चौराहे पर कटुता बैठी फ़न फैलाये,
पल-पल सोच रही पांचाली कैसे पथ पर आये जाये।
केशव के साये में क्यूँ कर छुपना उसकी लाचारी है,
द्वापर के चौसर का साथी वो खेल अभी भी जारी है।

सत्ता लोलुप दरबारों में सबके अपने स्वार्थ पल रहे,
भीष्म पितामह वाली चुप्पी देख यहाँ पर हृदय छल रहे।
सत्ता के चौखट पर कैसी लोकतंत्र की लाचारी है,
द्वापर के चौसर का साथी वो खेल अभी भी जारी है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        29 जुलाई, 2024

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