अर्पण कर दूँ
चाहो तो अर्पण कर दूँ।
कितनी ही सदियाँ बीती हैं,
तब जाकर अधिकार मिला।
कितनी ही साँसें रीती हैं,
तब जाकर ये प्यार मिला।
कुछ लम्हें हमने जोड़े हैं,
चाहो तो अर्पण कर दूँ।
कुछ सपने नयनों में ठहरे,
कुछ नयनों से बिछड़ गये।
कुछ कोरों में ऐसे उलझे,
पलकों से ही बिछड़ गये।
कह दो तो इन सपनों को मैं,
नयनों का दर्पण कर दूँ।
तेरी एक झलक पाने को,
पलकें अब भी हैं प्यासी।
कुछ तो ऐसा करो कि जिससे,
मन की हो दूर उदासी।
ऐसे पलकों पर छा जाओ,
खुद को आज समर्पण दूँ।
कुछ शब्द बटोरे हैं दिल ने,
चाहो तो अर्पण कर दूँ।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
12 जनवरी, 2024
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