मुक्तक- तेरी मेरी जुबानी

मुक्तक- तेरी मेरी जुबानी

बिना तेरे यहाँ कुछ भी मुझे अच्छा नहीं लगता।
लगे झूठा यहाँ सब कुछ मुझे सच्चा नहीं लगता।
भाती है न दुनिया की मुझे कोई भी सौगातें,
बिना तेरे मिले दुनिया मुझे अच्छा नहीं लगता।

साँसों में कहीं अब भी तुम्हारी याद बाकी है।
कि आहों में कहीं कुछ तो दबी फरियाद बाकी है।
कहीं कुछ तो बचा ऐसा हमारे बीच में अब भी,
कि मिट कर भी नहीं मिटती दिलों में याद बाकी है।

नहीं कुछ बात है बाकी बची जो है कहानी है।
नहीं कुछ पास है मेरे यही बाकी निशानी है।
कहो या न कहो ये बात मगर मालूम है मुझको,
कि जो मेरी जुबानी है वही तेरी जुबानी है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       09जनवरी, 2024

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