तुम मुझे आजमाते रहे।

तुम मुझे आजमाते रहे

टूट कर मैं बना बस तुम्हारे लिये,
और तुम बस मुझे आजमाते रहे।
हर घड़ी माना हमने तुम्हें ही खुदा,
और तुम बस मुझे बरगलाते रहे।

वादों की भीड़ में और वादा किया,
पूरा करना था जो वो भी आधा किया।
उम्र हमने गुजारी बस तेरी चाह में,
फूल ही बस बिछाए तेरी राह में।
पथ से काँटे हटाये तुम्हारे लिए,
और तुम बस मुझे आजमाते रहे।

एक विश्वास की हमने चादर बुनी,
कितने आये मगर न किसी की सुनी।
तुमने जो भी कहा हमने बस वो सुना,
लाखों की भीड़ में तुमको ही बस चुना।
कितने सपने सजाए तुम्हारे लिए
और तुम बस हमें आजमाते रहे।

छोड़ना ही था हमको तो आये ही क्यूँ,
जो था मुमकिन नहीं गीत गाये ही क्यूँ।
रात अँधियारों में छटपटाती रही,
दीप उम्मीदों के, पर जलाती रही।
अँधियारे हमने मिटाये तुम्हारे लिए,
और तुम बस हमें आजमाते रहे।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       18दिसंबर, 2023



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