आँसू अनमोल

आँसू अनमोल

निज मन के नील कमल पर,
इक तितली थी मँडराई।
कुछ देर ठहर कर उसने,
मुझसे थी प्रीत जताई।

पर मुझको बोध नहीं था,
कर बैठा मैं नादानी।
दे बैठा दिल मैँ उसको,
उसकी मंशा ना जानी।

मेरे सम्मुख आ-आकर,
बस झूठा प्रेम जताया।
नादान रहा ना समझा,
क्यूँ मुझको बहुत छकाया।

बेचारा दिल ना समझा,
उसने मुझसे क्या पाया।
क्यूँ दिल से मेरे खेला,
क्यूँ झूठा प्रेम जताया।

जो शब्द पलक से छलके,
वो गीतों में बसते हैं।
उस झूठे आलोड़न से,
अब आँसू भी हँसते हैं।

पर आँसू तो आँसू हैं,
कब जग ने सुनी कहानी।
खो गये गिरे मिट्टी में,
सब बातें हुईं पुरानी।

जब तोड़ दिया इस दिल को,
तब उसने था समझाया।
उन किंचित मौन पलों में,
मेरे मन को सहलाया।

आँसू का मोल नहीं है,
उपहार बहुत है सुंदर।
इनको मत व्यर्थ गँवाना,
हर प्रश्नों के ये उत्तर।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22अक्टूबर, 2023



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