प्रेम हमारा पूजन है

प्रेम हमारा पूजन है

गंगाजल सा पवित्र रूप है मन भी कितना पावन है,
मोहक छवि है भाव सुमन है नयनों में अनुबंधन है।
स्वर में पूजन हँसी कमल सी अधरों पर रक्तिम लाली,
पवित्र प्रेम की मूरत हो तुम प्रेम हमारा पूजन है।

रूप निखरती मधुर चाँदनी शीतलता का बोध करे,
मुस्कानों में फँस कर भी मन तनिक नहीं अफसोस करे।
चाल नदी की चंचल धारा दूर किनारे मदमाते,
कंचन काया देख मुदित मन मिलने का अनुरोध करे।

बरबस मन लिपटा जाता है देह नहीं ये चंदन है,
पवित्र प्रेम की मूरत हो तुम प्रेम हमारा पूजन है।

अंग-अंग पावनता जैसे हो मानस की चौपाई,
शब्दों में शीतलता जैसे हो गीता सी गहराई।
ग्रन्थों का सब मधुर गान हो कवि मन की तुम आशा हो,
तुमसे ही आदेशित होती कवि मन की ये अमराई।

नयनों से है नेह बरसता अन्तस में आराधन है,
पवित्र प्रेम की मूरत हो तुम प्रेम हमारा पूजन है।

जिसकी एक झलक पाने को रहती ये आँखें प्यासी,
जिसके सम्मुख आने भर से मन की हो दूर उदासी।
अलंकार उपमायें सारी छंद सभी तुम पर रीझे,
बिन तुम्हारे अनुमोदन के गीत हुए सब सन्यासी।

पथ के सब आकर्षण तुमसे, तुमसे ही सम्मोहन है,
पवित्र प्रेम की मूरत हो तुम प्रेम हमारा पूजन है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21अक्टूबर, 2023

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