दूर बड़ी रहिया

दूर बड़ी रहिया

कवने घाटे जिनगी जाई, कवने घाटे देहिया
धीरे-धीरे चला हो राही, दूर बड़ी रहिया।

जनम मरल के फेरा, जग में लगल बा
विधना के आगे बोला, केकर चलल बा
हाथ के लकीर में ही, लिखल सारी बतिया
धीरे-धीरे चला हो राही, दूर बड़ी रहिया।

सुख-दुख आये जाये, न केहू के सगा है
मन में वहम जेकरे हौ, वही तो ठगा है
धीरे-धीरे बीते ई भी, जइसे दिन रतिया
धीरे-धीरे चला हो राही, दूर बड़ी रहिया।

धन के ही सङ्गे-सङ्गे, मन जब बढ़ल बा
शंका के करिया बादर, मन के ढँकल बा
मन के सम्हारे में ही, बीते ई उमरिया
धीरे-धीरे चला हो राही, दूर बड़ी रहिया।

पद, मान, धन, दौलत, सब यहीं रह जाई
चार जन के काँधा ही हौ, सगरौ सच्चाई
फिर काहे मनवा मन से, करे बरजोरिया
धीरे-धीरे चला हो राही, दूर बड़ी रहिया।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09सितंबर, 2023

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