कौन है जो इस निशा में
लिख रहा है गीत सुंदर।।
कौन है जो इस निशा में
लिख रहा है गीत सुंदर।।
रूप की कैसी छटा है
चाँदनी शरमा रही है
रात भी अपने सफर में
स्वयं ही भरमा रही है
ये पौन मद्धम मनचली
बह रही क्यूँ आज रुककर
कौन है जो इस निशा में
लिख रहा है गीत सुंदर।।
नैन ये किसके यहाँ पर
कर रहे हैं छेड़खानी
कौन है जिसने सिखाया
मौसमों को बेइमानी
हर रहे है भाव मन के
गीत ये किसके निखरकर
कौन है जो इस निशा में
लिख रहा है गीत सुंदर।।
रश्मियाँ भी देखती है
रूप सुंदर आज छुपकर
लग रहा जैसे घुला हो
चाँदनी में आज केसर
आज मेघों की घटाएं
झर रही हैं नेह बनकर
कौन है जो इस निशा में
लिख रहा है गीत सुंदर।।
द्वार पर है रात ठहरी
सौम्य मन की आस लेकर
आँजुरी में पुष्प भर कर
अंक में मधुमास लेकर
लग रहा है स्वयं रतिपति
दे रहे हों छंद चुनकर
कौन है जो इस निशा में
लिख रहा है गीत सुंदर।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
09फरवरी, 2023
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