जाने क्या-क्या बहस छिड़ी है सत्ता के गलियारों में।।

जाने क्या-क्या बहस छिड़ी है सत्ता के गलियारों में।।

कितने सपने सिमट रहे हैं दीप तले अँधियारों में
जाने क्या-क्या बहस छिड़ी है सत्ता के गलियारों में।।

भूख कहीं है कहीं गरीबी और कहीं मारामारी
दूर खड़ी हो राह देखती बंद द्वार पर बेकारी
लेकिन अवसर सिमट रहे हैं चंद चुने मनुहारों में
जाने क्या-क्या बहस छिड़ी है सत्ता के गलियारों में।।

महँगाई की बात यहाँ अब कोई मोल नहीं रखता
जनता के टूटे सपने का शायद मूल्य नहीं रहता
अपने खाते काजू किशमिश थाली गिनते नारों में
जाने क्या-क्या बहस छिड़ी है सत्ता के गलियारों में।।

एक समस्या सुलझ न पायी दूजी नई बना लेते
ध्यान हटाने को जनता के वादा नया सुना देते
वोट के लिये मौन तोड़ते चौकों में चौबारों में
जाने क्या-क्या बहस छिड़ी है सत्ता के गलियारों में।।

कहीं गूँजते नारे कैसे कहीं टूटती मर्यादा
जोड़-तोड़ के खेल-खेल में वोटों की चिन्ता ज्यादा
पहले मुख के बोल बिगड़ते झुकते फिर मनुहारों में
जाने क्या-क्या बहस छिड़ी है सत्ता के गलियारों में।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07फरवरी, 2023

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