जाने कौन घड़ी में छूटे लम्हें फिर से मिल जायें।।

जाने कौन घड़ी में छूटे लम्हें  फिर से मिल जायें।।

यूँ मत फेरों नजरों को अंतस का दर्पण हिल जाये
जाने कौन घड़ी में छूटे लम्हें  फिर से मिल जायें।।

मौन मुखरित हो सके फिर भाव की गहराइयों में
छाँव हल्की मिल सके फिर टूटती परछाइयों में
कह सकें फिर बात सारी जो गिरे लम्हें कहीं पर
मुक्त हो मन कह सके फिर वक्त की बातें वहीं पर
 अँगड़ाइयाँ में।

यूँ मत तोड़ो डोर आस की टूटे सपने गिर जायें
जाने कौन घड़ी में छूटे लम्हें  फिर से मिल जायें।।

बनकर समर्पण हैं पड़ीं अब तक भुजायें नेह की
सुर्ख मन को हैं भिंगोती स्वेद बूँदें मेह को
है अभी तक याद मन को मृदु पाश की मीठी छुअन
छू के आँचल से तुम्हारे जो मिली पगली पवन।

यूँ मत रोको मुक्त पवन को भाव हृदय के घुट जायें
जाने कौन घड़ी में छूटे लम्हें  फिर से मिल जायें।।

जी उठेगी भावनाएँ अब बंद मन को खोल दो
सामने जो भी तुम्हारे सब आज मन की बोल दो
मन को मन की चाह प्रतिपल मन ही मन को खोजता
अपने अंतस की ध्वनि में मन है मधुरता खोजता।

यूँ मत रोको मन की राहें मन में गाँठें पड़ जाये
जाने कौन घड़ी में छूटे लम्हें  फिर से मिल जायें।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01जनवरी, 2023


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