जो गीत सजल ना होते तो भावों को कैसे गाता।।
जो गीत सजल ना होते तो भावों को कैसे गाता।।
कितनी तड़पन कितनी आहें कितनी मन की आशाएँ
पल-पल उमड़ रहीं अंतस में जाने कितनी धाराएँ
धारा को आश्वासन का देता कैसे कहो दिलासा
जो गीत सजल ना होते तो भावों को कैसे गाता।।
जब अधरों के कंपन से कुछ शब्द भटकने लगते हैं
जब पलकों के कोरों से सब भाव टपकने लगते हैं
तब भावों के महासमर से कैसे मन बाहर आता
जो गीत सजल ना होते तो भावों को कैसे गाता।।
कितने सपने कितनी यादें पग-पग कितनी गाथाएँ
छोटे से जीवन में कितनी लिख डाली हैं कवितायें
जो कलम सहारा ना होता कवि को कौन समझ पाता
जो गीत सजल ना होते तो भावों को कैसे गाता।।
कितनी रातें रोशन कर दीं उसका भाव नहीं देखा
जलता दीपक सबने देखा उसका घाव नहीं देखा
जलते दीपक के भावों को कैसे कोई पढ़ पाता
जो गीत सजल ना होते तो भावों को कैसे गाता।।
है कोई अफसोस नहीं अब जग से मैंने क्या पाया
जो माथे की रेख छपा था वो मेरे आँचल आया
किस्मत से अब बैर नहीं है भावों से गहरा नाता
जो गीत सजल ना होते तो भावों को कैसे गाता।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
09सितंबर, 2022
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