तुम भी हो औ हम भी हैं फिर कैसी ये तन्हाई है।।
जब तुम भी हो औ हम भी हैं फिर कैसी ये तन्हाई है।।
वो चाँद सितारों वाली रातें खत्म न होने वाली बातें
कितना कुछ था कहना तुमको फिर कैसी चुप सी छाई है।।
ऐसी ही थी साँझ सुहानी जब हम पहली बार मिले थे
आज वही मौसम है देखो औ फिर से वो पुरवाई है।।
कितने सपने कभी सजाये नयनों ने एकाकी पन में
आज मिले हैं जब हम औ तुम फिर पलकें क्यूँ शरमाई हैं।।
कितने लम्हे बीत गए हैं खुद को जी भर कर ना देखा
तेरी आँखों में देखा जब ये किस्मत भी इतराई है।।
चलो जलायें दीप खुशी के अंतस के सूने आँगन में
चलो सजा लें अपने मन को फिर "देव" दिवाली आई है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
हैदराबाद
10सितंबर, 2022
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