एक झलक प्रियवर की पाकर जो चमक जाती यहाँ ।।



एक झलक प्रियवर की पाकर जो चमक जाती यहाँ ।।

भावों की अठखेलियों में प्रीत वो नवगीत सखी
एक झलक प्रियवर की पाकर जो चमक जाती यहाँ।।

आहें लिखती साँसों में आस की नूतन कहानी
गुनगुनाती जिंदगी भी नेह की होकर दिवानी
मन सोचता फिर क्या कहे औ क्या यहाँ धारण करे
बिन कहे जो सब कहे मन में बसाए राजधानी। 

मन के सारे भाव की है प्रीत वो नवगीत सखी
एक झलक प्रियवर की पाकर जो चमक जाती यहाँ।।

मन से जब तक मन मिले न प्रीत भी कब पूर्ण होती
गीत रहते सब अधूरे चाहतें कब पूर्ण होती
पूर्णता के चाह में प्रतिपल मौन मन भटका करे
रहती अधूरी जिंदगी ये उम्र भी न पूर्ण होती।।

उम्र की नादानियाँ भी हैं प्रीत की नवगीत सखी
एक झलक प्रियवर की पाकर जो चमक जाती यहाँ।।

यूँ धधक कर मत जलो निज आग में बिरहन के सखी
इस विरह के बाद ही मिलता सुख मिलन का हे सखी
बढ़ती जाती हैं वो पल-पल प्रीत की नव रश्मियाँ
और भावों को परखती हैं चाहतों की तितलियाँ।।

चाहतों की तितलियाँ ही जीवन का नवगीत सखी
एक झलक प्रियवर की पाकर जो चमक जाती यहाँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23सितंबर, 2022


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