चुभे हृदय में शूल।।

चुभे हृदय में शूल।।

आतंकित हो गयी मनुजता चुभे हृदय में शूल
आँखों ने जो दृश्य दिखाया गये ज्ञान सब भूल।।

नफरत के प्याले छलकाये 
कुछ मासूमों को फिर बहकाये
दे कर नयनों में मृदु सपने 
राहों से उनको भटकाये।।

लालच की यूँ ललक जगी गया पथिक पथ भूल
आतंकित हो गयी मनुजता चुभे हृदय में शूल।।

दो पल की रोटी को तरसा
दहशत के साये में जीवन
खिलने से पहले ही उजड़े
ना जाने कितने ही बचपन।।

बिछड़े सर से कितने साये औ डाली से फूल
आतंकित हो गयी मनुजता चुभे हृदय में शूल।।

आमों के उन बागीचों में
कल कोयल गायी कूक जहाँ
नफरत के अंधों ने बोई
अब नफरत की बंदूक वहाँ।।

नफरत के प्यालों में डूबे मानवता के मूल
आतंकित हो गयी मनुजता चुभे हृदय में शूल।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22सितंबर, 2022

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