मुक्तक।

मुक्तक।   

चंदा से सितारों से तुम्हारी बात करता हूँ
अपने गीत गजलों में तुम्हें ही याद करता हूँ
कहे कुछ भी यहाँ कोई मगर सच है यही सुन लो
तुम्हारे जीत की हरपल मैं फरियाद करता हूँ।।

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तुम्हारी याद अधरों पर तुम्हारे गीत अधरों पर
तुम्हारी हार अधरों पर तुम्हारी जीत अधरों पर
हैं नयनों ने बसा रखे सुहानी वो मुलाकातें
लिखे जो मौन ने उस पल सुहानी प्रीत अधरों पर।।

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कहना क्या किसी से अब औ सुनना क्या किसी से है
मिलना क्या किसी से और बिछड़ना क्या किसी से है
कब ठहरा समय बोलो महज यादें ही रहती हैं
इन यादों के साये में लिपटना क्या किसी से है।।

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मैं अपनी नींद पलकों की तुम्हारी नींद पर वारूँ
मैं अपने स्वप्न सारे अब तुम्हारे स्वप्न पर वारूँ
कहे कुछ भी कहीं कोई मगर दोनों को है मालूम
तुम्हारी जीत की खातिर मैं अपनी जीत सब वारूँ।।

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तुम्हारे शब्द गीतों में मैं लिखता हूँ सुनाता हूँ
कभी गाये जो संग-संग में अब भी गुनगुनाता हूँ
भरी महफ़िल में अब भी जब तुम्हारी बात चलती है
मैं खुद से बात करता हूँ मैं खुद ही मुस्कुराता हूँ।।

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©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       13सितंबर, 2022

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