1
कितना दूर अभी चलना है
रुकना है आगे बढ़ना है
पग नाप रहे मोड़-मोड़ को
जीवन के हर छोर-छोर को
कहीं धूप है छाँव कहीं है
मौसम में बदलाव कहीं है
अब बोलो क्या तुमको प्यारा
कितना दूर गाम तुम्हारा।।
2
सिरहाने तुम आन खड़े हो
पकड़े बाँह मेरी खड़े हो
कितनी बार यहाँ पूछा है
शब्द कहो क्यूँ कर सूखा है
कह दो अपनी बात हृदय की
चाह नहीं क्या कहो अमिय की
कह दो जो है और सहारा
कितना दूर गाम तुम्हारा।।
3
कभी लिया आलिंगन मुझको
कभी माथ लगाया पग धूल
तुमने जो सम्मान दिया है
उसे कैसे मैं जाऊँ भूल
दीप सजाया जो राहों में
आ ,उसको कभी जला जाओ
अपने उन सारे वादों को
आओ इक बार निभा जाओ
तेरे वादों पर सब हारा
कितना दूर गाम तुम्हारा।।
4
हर गाँवों की चौपालों से
संसद के उन गलियारों तक
दूर भागती इन सड़कों से
कहीं ठहरते चौराहों तक
हमने नजर जहाँ तक डाली
देखी बस रातें अँधियारी
थोड़ी लाली इधर बिखेरो
अपने उन वादों को तोलो
दे दो अब तो साथ हमारा
कितना दूर गाम तुम्हारा।।
5
कितनी सदियाँ बीत गयी हैं
पर वैसा बदलाव न आया
आरोपों के रथ पर चढ़कर
क्या तुमने बस समय गँवाया
केवल अपनी बात कही है
प्रश्नों से प्रतिपल दूर रहे
प्रतिपल सदियों ने देखा है
लम्हे सत्ता में चूर रहे
लम्हा जीता लम्हा हारा
कितना दूर गाम तुम्हारा।।
6
गहराती जा रही रात है
अधरों पर अनकही बात है
कौन पूछता जग में बोलो
अवरोधों को खुद ही खोलो
लिखो रात की नई कहानी
हो जाये दुनिया दीवानी
रचो भाव कुछ ऐसा सुंदर
रहे नहीं अब कोई अंतर
तुमसे पूछे स्वयं सितारा
कितना दूर गाम तुम्हारा।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26जुलाई, 2022
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