क्या चल पाओगे।
नैतिक पथ पर पलने वाले
पग पग कितने शूल चुभेंगे
फिर बोलो क्या चल पाओगे।।
नहीं चाहते दया भाव तुम
बने बिगड़ते का प्रभाव तुम
कहीं वेदना कहीं शिकायत
कहीं अभावों का प्रवाह सुन
खुल कर दिल की कहने वाले
अपनेपन को गुहने वाले
हृद पर तेरे दंश चुभेंगे
फिर बोलो क्या सह पाओगे।।
पग पग बीत रहा है आदर
घट घट रीत रहा है सागर
त्याग समर्पण दया भाव की
जैसे फूट रही हो गागर
रीत रहे जीवन मूल्यों में
खुद को आज परखने वाले
तुम पर भी आरोप लगेंगे
फिर बोलो क्या सह पाओगे।।
सच का पंथ सुनहरा कब था
आज यहाँ जो हो जाएगा
खुद को यहाँ तपाया जो भी
सागर से मोती पायेगा
जग के तानों से घुट घुट कर
सच को यहाँ परखने वाले
जाने कितने प्रश्न उठेंगे
फिर बोलो क्या चल पाओगे।।
सीधे सीधे चलने वाले
नैतिक पथ पर पलने वाले
पग पग कितने शूल चुभेंगे
फिर बोलो क्या चल पाओगे।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
21जुलाई, 2021
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