आहों से सत्कार।
आहत उतनी बार हुआ है
जब जब इसने हँसना चाहा
आहों से सत्कार हुआ है।।
नहीं करी थी आशा मैंने
कोई नहीं दिलासा चाही
अपनी उम्मीदों को थामे
सपनों की आजादी चाही
पर मेरे सपनों ने जब भी
पलकों का आकाश छुआ है
गिरी दामिनी आशाओं पर
आहों से सत्कार हुआ है।।
मेरे हँसने पर भी जाने
कितने चेहरे मुरझाये हैं
मेरे गाने से भी कितने
घाव उभर कर आये हैं
मेरे गीतों ने जब जब भी
महफ़िल को गुलजार किया है
गिरी दामिनी आशाओं पर
आहों से सत्कार हुआ है।।
रिश्तों ने परिभाषा बदली
आहों ने अभिलाषा बदली
ऊबा, दूर हुआ मैं जब भी
संवादों ने भाषा बदली
उनके शब्दों को लेकर ही
जब उनसा व्यवहार किया है
गिरी दामिनी आशाओं पर
आहों से सत्कार हुआ है।।
जाने कैसा जीवन पाया
अपने सुख को छलता आया
जब भी स्वप्न सुनहरे चाहा
पलकों में कुछ चुभता पाया
काँटों को जब दूर किया है
तानों ने हुंकार किया है
गिरी दामिनी आशाओं पर
आहों से सत्कार हुआ है।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22जुलाई, 2021
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