मन ठहरा, मन बहता




मन ठहरा, मन बहता।   

नज़रों में जबसे तुम आये 
खुद को ही हम भूल चले
और नहीं कुछ याद हमें 
सुध बुध सब अपनी भूल चले।

तुझमें मैने अपना देखा
मैंने सुंदर सपना देखा
उन सपनों की अँगनाई में
जीवन गीत निखरते देखा।

उन गीतों के छंदों में ही
मन मेरा कुछ यूं भटक गया
अब तक ठहरा यहीं कहीं पे
और कभी फिर बहक गया।

मुश्किल है तुम बिन चल पाना
बिन तेरे मेरा जी पाना
हैं चुनौतियां माना पथ में
 कठिन मगर मेरा रुक पाना।

पथरीली राहों का हमदम
साथी अब तुमको बना लिया
तूफानों की परवाह किसे 
जब मन ने तुझे अपना लिया।

तुम आशंकाओं की सुलझन 
मेरे गीतों की झंझन हो
और नहीं अब भाता मुझको
तुम ही जीवन का मधुबन हो।

तेरे नैनों के काजल में
मेरा मन अब उलझ गया
उलझ रहा था बहुत मगर
अब तुझमें ही सुलझ गया।।
***


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विश्वास

विश्वास पलकों के कोरों से ढलके जाने कितने सपन सलोने, लेकिन इक भी बार नयन ने उम्मीदों का साथ न छोड़ा। मेरी क्या हस्ती औरों में जो उनका अनुरंजन...