तड़प जाती नहीं

            तड़प जाती नहीं           

चांद छूने की चाहत में चलता रहा
संग-संग लहरों के चलता रहा
मिलन की तड़प है कि जाती नहीं
तेरी आगोश को दिल मचलता रहा।।

जतन कितनी हुई खुद को समझाने की
मनाने की, दिल को बहलाने की
चाहत तेरी है कि जाती नहीं
सूरत कोई दिल को भाती नहीं।।

लहरों के जैसे मैं चलता रहा
चाह में तेरी पल-पल मैं जलता रहा
राह तेरी मैं चलता रहा हर घड़ी
चोट खा खा के लेकिन संभलता रहा।।

माना कि तुम बहुत दूर हो
चांद की चांदनी, रात का नूर हो
कुछ तो कहो, कुछ तो संकेत दो
है समर्पित मेरी सृष्टि तेरी राह में
दो कदम साथ चलने का वादा करो।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19मई, 2020

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