मजबूर।
कागज के टुकड़े पे
तुमने कुछ लिखा था
कुछ तो मैने पढा
कुछ अधूरा रह गया
जब तलक तुम्हे समझा पाते
अपनी खामोशी का सबब
तुम्हे बतला पाते
तुम्हारी आंसू की बारिश में
सारा एहसास बह गया
हम तो ठहरे रहे वहीं पर
मगर वक्त निकल गया।।
ये जरूरी नही के
हर राह को मंजिल मिले
ये जरूरी नही के
हर लहर को साहिल मिले
कुछ लहरें दरिया के साथ बहती हैं
ख्वाहिश यही इतनी है बस
वो जा के समुंदर में मिलें।।
एक खामोश सी मोहब्बत थी
शायद, हम दोनों के दरम्यान
कभी हम ये कह न सके
तुम भी कहीं समझ न सके
कुछ ख़ता तुम्हारी भी तो रही होगी
कुछ हम भी मजबूर हो गए
ये तो वक्त का ही फैसला था
मगर, मजबूर हम क्या हुए
तुम तो दूर हो गए।।
©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
23अप्रैल,2020
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