कैसा तंत्र मनाएं हम।
राजतंत्र, भीड़तंत्र या गणतंत्र
कैसा तंत्र मनाएं हम।
कदम कदम सिसकता भारत
हर चौराहे पर लुटता भारत
घर में नहीं सुरक्षित भारत
कोख में भी बिलखता भारत
किसको क्या समझाएं हम
कैसा तंत्र मनाएं हम।
जातिवाद में बिखरा भारत
अवसरवाद में जकड़ा भारत
स्वार्थी समाजवाद में ललचाता भारत
इससे मुक्ति कैसे पाएं हम
कैसा तंत्र मनाएं हम।
हर घटना से टूटती भावनाएं
धर्म को वोट से जोड़ती भावनाएं
राजनीति की चाल में फंसकर
खण्ड खण्ड टूटती भावनाएं
ऐसे में कुछ तुम ही बोलो
कौन सा गीत गुनगुनाएं हम
कैसा तंत्र मनाएं हम।
भ्र्ष्टाचार में जकड़ा भारत
नैतिकता से गिरता भारत
भूख, गरीबी, अवसरवादी
उन्मादी व्यवहारों में लिपटा भारत।
क्या नेता, क्या आम-ओ-खास
लगता मौके की बाट जोह रहे
ऐसे में अपना दर्द छुपा कर
कैसे अब मुस्काएं हम
कोई अब तो जतन बताए
कैसा तंत्र मनाएं हम।
इंतज़ार है उस पल का
जब भारत फिर से मुस्कायेगा
जाति-धर्म की तोड़ गुलामी
नई सुबह फिर लाएगा।
राजनीतिक अधिकार के संग संग
उत्तरदायित्वों का ध्वज फहराएगा।
जब चंहुओर स्वाभिमानी भारत
व फसल राष्ट्रवाद की लहरायेगी
जब भारत की आधी आबादी
निडर भाव से मुस्कायेगी।
सच कहता हूँ तब भारत माता
खुश होकर मुस्कायेगी
लाल किले पर लहरा के तिरंगा
गीत खुशी के गायेगा।।
©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
24अप्रैल, 2020
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