सुना देश में घात हुआ है
भीड़ द्वारा आघात हुआ है
भीड़ का कोई धर्म नही है
पर सजा भीड़ दे, धर्म नही है।
मौन पड़ी है सृष्टि सारी
बस रो रही संस्कृति बेचारी
ये मानवता का कर्म नही है
हत्या कोई धर्म नही है।
यदि अपराधी लगता है कोई
तो न्याय व्यवस्था करती है
व्यवस्था ही जब कुंद पड़ जाए
न्याय कहां फिर मिलती है।
संज्ञान स्वतः जो लेते हैं
आत्ममुग्धता में मौन पड़े हैं
तख्ती, मोमबत्ती, मोर्चे वालों
की जिह्वा पर ताले बंद पड़े हैं।
भारत वो देश है प्यारों
अन्याय नहीं जो सहता था
निरपराधों की रक्षा हेतु
हर अपराधों से लड़ता था।
पर क्या हो गया है भारत को
खुद भारत ने क्यूँ डँसा भारत को
अपराध की हर मानसिकता का
सब मिल कर परित्राण करें।
शस्य श्यामला इस धरती को
प्यार समर्पण का अभिप्राय करें
धर्म व्यवस्था स्थापन हेतु
न्याय का उचित सम्मान करें।।
©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
21अप्रैल, 2020
ध्यानार्थ- मैंने अपनी ये कविता अपने मित्र श्री रमाकांत श्रीवास्तव जी/ हैदराबाद को प्रकाशनार्थ दी है। कॉपीराइट मेरे पास ही रहेगा -21:28, दिन- 21 अप्रैल, 2020
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