सुगम पथ।
नव सृजन का भाव लेकर
राष्ट्र जन गण मन को तक रहा
धर्म बंधु हो, न्याय बंधु हो
उद्देश्य केवल पथ सुगम हो।
लाभ-हानि, लोभ-मोह का
सम्मुख भले पारावार हो
भीषण हिलोरे ले रहा
भले सिंधु अपार हो
सुगम पथ होता तभी, जब
कुशल हाथ मे पतवार हो।
विश्व दिग्भ्रमित हो रहा
ध्वांतचर प्रवृत्ति के मायाजाल से
चंहुओर क्रंदन है मचा
स्वार्थ युक्त व्यवहार से
स्वार्थ रूपी इस निशा का
आज तू संहार कर।
अपने कुशल प्रयास से
सुगम पथ का निर्माण कर।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11अप्रैल,2020
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