मां तू याद बहुत आती है

 माँ तू याद बहुत आती है                     

अरे उठता हूँ, क्यों परेशान करती हो
आज तो छुट्टी है, फिर भी हैरान करती हो
एक दिन आराम का मिलता है
न खुद आराम करती हो, न करने देती हो
इसी उधेड़बुन में पड़ा था, कि अलार्म घनघनाया
सुबह के नौ बज चुके थे, सूरज सर चढ़ चुका था
बड़ी अजीब स्थिति है दोस्तों
पहले मां की मखमली छुअन हमें जगाती थी
अब शहर का शोर हमें जगाता है।
यूँ तो शहर की चारदीवारी तेरी गोद से भी बड़ी है
पर जाने क्यूँ जब भी शहर का खालीपन डराता है
सच कहता हूँ- माँ तब तुम याद बहुत आती हो।।

तू जल्दी से तैयार हो जा
वरना तुझे देर हो जाएगी
अभी तक यूँ ही पड़ा है
जल्दी से मुंह हाथ धो ले
मैं नाश्ता लाती हूँ।
अच्छा तू अपना काम कर
मैं ही तुझे नाश्ता कराती हूँ
कितना भी रोकूँ तुझे
पर तू कहां मानती थी
अपने ही हाथों से हर रोज़ 
निवाला खिलाती थी
अब तो सबकुछ है मेरे पास 
पर भूख नही जाती है
देखकर रसोई का सूनापन
सच कहता हूं- माँ तू याद बहुत आती है।।

मेरी हर छोटी बड़ी गलतियों पर
तू आंख दिखाती थी
आने दे तेरे पिताजी को, कहकर धमकाती थी
जब भी पिताजी डांटते थे, 
तू सामने आ जाती थी
ज्यादा बोलें तो उन्हें भी तू आंख दिखाती थी
यदि मार मुझे पड़ती तो आंसू तू भी तो बहाती थी
कोई देख न ले, आँचल में अपना मुंह छुपाती थी
पर अब तो रोज़ ही जाने कितनी बातें सुनता हूँ
सवाल ये नही के इनसे परेशान होता हूँ 
सुन सुन कर बातें सबकी हैरान होता हूँ
पर मां खुदगर्जी में दुनिया जब भी रुलाती है
सच कहता हूँ- माँ तू याद बहुत आती है।।

होली में ज्यादा रंग न लगाना
अपनी आंख रंगों से बचना
दिवाली में पटाखे जरा दूर से ही बजाना
अभी तक नए कपड़े नही पहने
अरे शाम हो गयी दिया कौन जलाएगा
है राम इस नालायक को कब अक्ल आएगी
कब तक बच्चा बनकर रहेगा
तू कुछ समझता क्यूँ नही
मां मैं आज भी बच्चा बनना चाहता हूँ
पर जब कभी दुनिया समझदार बताती है
सच कहता हूँ- माँ तू याद बहुत आती है।।

वो गर्मी की धूप में कमरे में बंद कर देना
जाड़े की सर्दी न लगे रजाई में दुबका लेना
फिर बारिश में भींग कर आया है
तुझे सर्दी लग जाएगी
तुरन्त तौलिए से सर सुखाती थी
तुझे कब समझ आएगी।
अब तो रोज़ ही सर्दी, गर्मी, बारिश झेलता हूँ
मौसम के हर पहलू से खेलता हूँ
इनसे बचने को सारे साधन पास हैं
माँ अब तो एसी में रहता हूँ
मखमली बिस्तर पर ही सोता हूँ
पर अब भी गर्मी की वो धूप
बरसात की वो बूंदें
और जाड़े की वो सर्दी जब भी सताती है
सच कहता हूँ- माँ तू मुझे याद बहुत आती है।।

पहले जब भी ठोकर खाकर गिर जाता था
तुम दौड़कर मुझे उठाती थी
पर अब तो रोज़ ही 
जाने कितनी ठोकरें खाता हूं
पर अब कोई नही उठाता है
जब भी उन ठोकरों से आत्मा कराहती है
सच कहता हूँ- माँ तू याद बहुत आती है।।

बहुत बेफिक्र रहता था मैं
जब तू पास रहती थी
सारी हैरानी- परेशानी हमेशा दूर रहती थी
जब भी डर लगता था, तेरे गले लग जाता था
ऐसा नही के अब डर नही लगता है
ऐसा भी नही के अब डर से निकल नही पाता हूँ
पर सच तो ये है माँ, तेरा वो आँचल नही मिलता
अब बालों में हाथ फिराकर कोई ढांढस नही बंधाता।
लेकिन फिर भी जब अपनों से उपेक्षित होता हूँ
उनके कटुवचनों के बोझ को सहता हूँ
तब जाने क्यूँ इक सिहरन सी आती है
सच कहता हूँ- माँ तब तू याद बहुत आती है।।

अजय कुमार पाण्डेय

हैदराबाद




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