पति-पत्नि के रिश्ते का व्यंगात्मक रूप।
शाम होते ही जैसे मैं दफ्तर से घर आया
मुस्कुराते हुए पत्नी को दरवाजे पे पाया।
मैंने पूछा-अरे भाग्यवान क्यों मुस्कुरा रही हो ?
तुम तो चाहते ही हो कि मैं परेशान रहूँ।
मैंने मन मे सोचा-जब भी मुझे देख तुम यूँ मुस्कुराती हो
कुछ न कुछ दस-पांच हज़ार का चूना लगाती हो।
अरे मैंने तो मज़ाक किया था,तुम नाहक ही परेशान होती हो
हैं अब मैं मज़ाक के लायक ही रह गयी हूँ।
पड़ोसन को देखकर तो खूब मुस्कुराते हो
पर मुझे देखते ही जाने कहाँ खो जाते हो।
बात बिगड़ती देख मैंने बात को संभाला
तुम्हे देखते ही मैं अपने होश खो जाता हूँ।
सच कहूँ जानू तो मैं तुम्हारी
लटभरी ज़ुल्फ़ों में खो जाता हूँ।
चलो जी बात बनाना कोई आपसे सीखे
आप हाथ मुंह धो लीजिये मैं चाय लाती हूँ।
मामला सेट होते देख मेरी जान में जान आयी
अभी बैठा ही था कि श्रीमती जी चाय लेकर आयीं।
पास बैठते ही उसने मुझे एक कागज़ थमाया
कागज़ नहीं वो दिशानिर्देशों का एक पुलिंदा था।
अगले सप्ताह उसे मायके जाना था
इसलिए मुझे उसे अपने कुछ नियम बताना था।
उसने कहा - मेरे जाने के बाद
फालतू कहीं न आना जाना
और हां घर खाली पाकर
रोज़ दोस्तों की महफ़िल न सजाना।
मेरी अनुपस्थिति में कामवाली कम ही आएगी
यदि तुम कुछ बोलोगे तो वो तुम्हे बुद्धू बनाएगी।
तुम तो हो ही बुद्धू, उसकी बातों में न आना
और हां उसके सहारे घर छोड़ के कहीं न जाना।
और हां पड़ोसन से जरा ज्यादा ही सावधान रहना
अकेला पाकर वो तुम्हें बहलायेगी।
तुम तो वैसे भी उस पर लट्टू हो
उसकी चिकनी चुपड़ी बातों में न आना।
उसका क्या वो तो तुमसे अपना काम निकलवाएगी
कुछ गलत होने पर सारा इल्जाम
तुम पर ही लगाएगी।
तुम पर ही लगाएगी।
तब से मैं बड़ी ही पशोपेश में हूँ
ये उसकी सलाह थी या उलाहना
अगर इसे समझ सके कोई
तो मुझे भी समझाना।
खैर नियत दिन, उसे ट्रेन में बिठा के आया
घर आते ही जोर से दरवाजा खटखटाया।
वो अंदर होती तो दरवाजा खोलती
याद आते ही खुद ताला खोल घर के अंदर आया।
न जाने घर क्यूँ सूना सूना लग रहा था
सब कुछ वैसा ही था पर
कुछ कुछ अधूरा सा लग रहा था।
यूँ तो घर मे संगीत लहरी बज रही थी
सच कहूँ तो मेरे कानों को
बिल्कुल नहीं जंच रही थी।
तब मुझे एहसास आया-
पति पत्नी गृहस्थी के दो पहिये हैं
एक के बिना गृहस्थी की गाड़ी अधूरी है
यदि पति राजा तो पत्नी रानी है
दोनों के सप्रेम मिलन से ही
बनती नए युग की कहानी है।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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