नयन क्यूँ सजल हो रहे हैं सजन

   नयन क्यूँ सजल हो रहे हैं सजन                                   

ये नयन क्यूँ सजल हो रहे हैं सजन
शब्द क्यूँ मौन हैं, भाव बेचैन हैं
करुण-कण से विचलित रहता है मन
क्यूँ न दुर्गमतम तल को गति से कर लें सरल।
ये नयन क्यूँ सजल हो रहे हैं सजन।।

इक मधुर सी कसक है हृदय में दबी
चाहा प्रतिपल तुझे कह न पाए कभी
प्रतिपल अमिट जो कहानी बनी
उस कहानी को समझ क्यूँ न पाया ये मन।
ये नयन फिर सजल क्यूँ न होएं सजन।।

तुम पावस ऋतु की प्रथम बूंद हो
तुम चंचल सुरसरि नीर हो
जो मैं नभ का हूँ अंतिम नक्षत्र
तो तुम भी उषा की हो पहली किरण।
फिर नयन क्यूँ सजल हो रहे हैं सजन।।

सत्य है या फिर है ये कोई भरम
स्वप्न है ये या फिर यथार्थ का प्रथम है चरण
जो भी पर शून्य अब न रहे
आओ मिलकर करें दूर सारे भरम।
आओ मिलकर करें दूर सारे भरम।

अजय कुमार पाण्डेय

हैदराबाद



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