फिर से चलो डूब जाते हैं हम

  फिर से चलो डूब जाते हैं                                              

आओ फिर से चलो डूब जाते हैं हम
फिर कहानी वही दोहराते हैं हम।

धार अमृत की देखो पुनः आ रही
प्यार की चांदनी भी पुनः छा रही
इस अमृत सुधा को अधरों पे धरो
गीत अपने मिलन की चांदनी गा रही।।

चाह मेरी तुम्हीं आस मेरी तुम्हीं
जो मैंने बुनी वो कहानी तुम्हीं
तुम ही मेरी निशा, प्रभात भी हो तुम्हीं
सुरभित उपस्थिति का उल्लास तुम्हीं।।

इस रात के बाद जो भी होगी सुबह
वो स्नेहिल, सुनहरा प्रभात होगा
स्वर्ग सा उल्लास भर दें यहां
जो होगा समर्पण का वरदान होगा।।

ये अनुरोध है, है ये आराधना
उपासना है ये, नहीं है वासना
इसकी आगोश में डूब जाते हैं हम
कहानी अमिट लिख जाते हैं हम।।

आओ फिर से चलो डूब जाते हैं हम
फिर कहानी वही दोहराते हैं हम।।

✍️©अजय कुमार पाण्डेय

       हैदराबाद

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