रूप को मैं कंवल लिख दूं

रूप को मैं कँवल लिख दूं।                                                

रूप को मैं तुम्हारे कँवल लिख दूं
तुम कहो तो मैं तुम पर गजल लिख दूं।

शब्दों से श्रृंगार ऐसा करूं
लेखनी से भी मनुहार ऐसा करूं
पास सम्मुख सदा मेरे बैठी रहो
तेरे हर भाव पर मैं गजल लिख दूं।।
रूप को मैं तुम्हारे कँवल लिख दूं
तुम कहो तो मैं तुम पर गजल लिख दूं।।

नैनों से जब तेरे नैना मिले
शर्म की लाज की सारी परतें खुलें
जो मेरा प्रणय तुमको स्वीकार हो
तो समर्पण से अपने श्रृंगार तेरा लिखूँ।
तुम कहो तो मैं तुम पर गजल लिख दूं
रूप को मैं तुम्हारे कँवल लिख दूं।।

मेरे एकाकीपन को जो तुमने चुने
मेरे संग तुमने, जो सपने बुने
उन सपनों में, मैं रंग भर दूं
तुम कहो तो मैं तुम पर गजल लिख दूं
रूप को मैं तुम्हारे कँवल लिख दूं।।

अजय कुमार पाण्डेय

हैदराबाद


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