अभिमन्यु
चक्रव्यूह में खड़ा हुआ वो
घिरा हुआ था वीरों से
घिरा हुआ था वीरों से
कहने को सब शूरवीर थे
पर व्यवहार कर रहे थे कायरों से।
पर व्यवहार कर रहे थे कायरों से।
न थी इतनी ताकत उनमें के
पार पा सकें उस बालक से
पार पा सकें उस बालक से
वो कोई सामान्य नहीं था
वो वीरों में महावीर था।
वो वीरों में महावीर था।
वीरों से अतिवीरों तक उसने
नाको चने चबवाया था
नाको चने चबवाया था
चन्द्रदेव के पुत्रमोह वश
आंशिक जीवन पाया था।
आंशिक जीवन पाया था।
मां सुभद्रा के गर्भ में वो
बन अर्जुन नंदन आया था।।
बन अर्जुन नंदन आया था।।
बाल्यकाल मामा संग बीता
जहां समुचित ज्ञान वो पाया था
जहां समुचित ज्ञान वो पाया था
वेद पुराण से अस्त्र शस्त्र में
बन पारंगत वो आया था।।
बन पारंगत वो आया था।।
गर्भकाल में ही उसने था
चक्रव्यूह का ज्ञान लिया
चक्रव्यूह का ज्ञान लिया
अपनी ज्ञान की उस ताकत का
उसने कुरुक्षेत्र में सम्मान दिया।।
उसने कुरुक्षेत्र में सम्मान दिया।।
जिस कुरुक्षेत्र की रचना कर
कौरव मन ही मन हर्षाये थे
कौरव मन ही मन हर्षाये थे
उसी चक्रव्यूह के सब द्वारों पर
वो उससे मुंह की खाये थे।।
वो उससे मुंह की खाये थे।।
दुर्योधन,कर्ण , द्रोण, दुःशासन
सबका मान भंग कर डाला था
सबका मान भंग कर डाला था
अपने रण कौशल से उसने
सबको खूब नचाया था।।
सबको खूब नचाया था।।
हस्र सुनिश्चित देख के कौरव
नैतिकता सब भूल गए,
नैतिकता सब भूल गए,
चक्रव्यूह को खण्डित देख
युद्ध के मानदंड सब भूल गए।।
युद्ध के मानदंड सब भूल गए।।
कायर कौरवों ने घेर कर
उस पर पीछे से वार किया
उस पर पीछे से वार किया
कुरुक्षेत्र को शर्मसार कर
जयद्रथ ने निहत्थे बालक पर वार किया।।
वार तीव्र था इतना
कि वीर उसे सहन न कर सका
मानदंडों के सैकड़ों प्रश्न छोड़
वो धरा पर गिर पड़ा।
वीर के गिरते ही
कौरव मदमस्त हुए
युद्धकौशल के सारे
मानदंड सब ध्वस्त हुए।
ये ऐसा अध्याय है
जो कोई भूल नही सकता
संघर्षों के जीवन में
बन कौरव चल नही सकता।
जयद्रथ ने निहत्थे बालक पर वार किया।।
वार तीव्र था इतना
कि वीर उसे सहन न कर सका
मानदंडों के सैकड़ों प्रश्न छोड़
वो धरा पर गिर पड़ा।
वीर के गिरते ही
कौरव मदमस्त हुए
युद्धकौशल के सारे
मानदंड सब ध्वस्त हुए।
ये ऐसा अध्याय है
जो कोई भूल नही सकता
संघर्षों के जीवन में
बन कौरव चल नही सकता।
जीवन अपना कुरुक्षेत्र है
इससे है इनकार नही
इससे है इनकार नही
पर जयद्रथ बनने का
किसी को अधिकार नही।।
किसी को अधिकार नही।।
जीवन कोई युद्ध नहीं
ये तो केवल कौशल है
ये तो केवल कौशल है
कुशलपूर्वक जीने को
तुम खुद को तैयार करो
तुम खुद को तैयार करो
अपने भीतर के अभिमन्यु को
सस्नेह स्वीकार करो।।
सस्नेह स्वीकार करो।।
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