हम सपनों का संसार बनायें

हम सपनों का संसार बनायें

नजरों के उस पार गगन में जहाँ रश्मियों में विचलन हो,
वहाँ गीतिका के बोलों को दीपों का आधार बनायें।
हम गीतों का संसार बनायें।

फूलों की पंखुरियों से हम रंग गुलाबी ले आयें,
सभी युगों में प्रासंगिक हो भाव प्रभावी ले आयें।
साँसों की आहट को सुनकर भावों का विस्तार करें,
नयन कोर के नव सपनों के आगत का मनुहार करें।
सपनों की उस नयन कोर से कहीं अधूरी अनबन हो,
वहाँ प्रीत के मृदु बोलों को सपनों का आधार बनायें।
हम सपनों का संसार बनायें।

एक दर्पण जो हृदय के भाव चित्रों को उकेरे,
राग के संवेग के मन प्राण गीतों को उकेरे।
मन बने शिल्पी हृदय के चित्त को विस्तार दे दे,
हो चुके अव्यक्त निर्गुण को गुणों का सार दे दे।
जोड़ने में यदि हृदय के कोर में कहीं उलझन हो,
चित्त में अनुराग घोलें गीत में मनुहार गायें।
हम सपनों का संसार बनायें।

मन बने शिल्पी कि जिसका भाव हो कोणार्क सारा,
मन सोचता है हो सृजन में नेह में परमार्थ सारा।
रेत में लिख दें लहर से हो अमिट जो कामनाएँ,
और सदियों तक छुवन हो गीत की हर भावनाएँ।
भावनाओं की छुवन में थोड़ी सी फिसलन भी हो,
साँच को स्वीकार कर हम साँस में व्यवहार गायें।
हम सपनों का संसार बनायें।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05 जून, 2024

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