किधर जाऊँगा

किधर जाऊँगा

जिंदगी तू साथ देगी तो निखर जाऊँगा
हाथ छूटा जो तेरा तो मैं बिखर जाऊँगा

यूँ तो वादे हैं हज़ारों यहाँ इन राहों में
मुझसे वादा जो कर तो सफर पाऊँगा

वैसे बन-बन के भी बिगड़ा हूँ बहुत
तू जो हँस देगी तो सुधर जाऊँगा

तेरी कश्ती का मैं मुसाफिर हूँ यहाँ
छूटी जो कश्ती तो किधर जाऊँगा

"देव" चलता है सफर जब तलक साँसें हैं
है ये लम्हों का सफर हँस के गुजर जाऊँगा

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08 जुलाई, 2024


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