बूँदों का मधुमास।
मचला यूँ मन का आँगन ये, ज्यूँ बूँदों ने मधुमास किया।
हरित हुआ धरती का आँचल,
काली मेघ घटायें छाईं।
बारिश की बूँदेँ जीवन में,
बनकर के सौगातें आयीं।
तन मन ऐसे भींगा जैसे, मृदु भावों ने अनुप्रास किया।
मचला यूँ मन का आँगन ये, ज्यूँ बूँदों ने मधुमास किया।।
देख धरा का खिलता आँचल,
मेघों का भी मन डोला है।
दूर क्षितिज पर मिलन देख कर,
पपिहे का भी मन डोला है।
पपिहे ने भी गीत सुना कर, फिर प्रियतम को है याद किया,
मचला यूँ मन का आँगन ये, ज्यूँ बूँदों ने मधुमास किया।।
सावन ऋतु की देख उमंगें,
हिय प्रेम राग भर जाता है।
दूर देश बैठे पियतम की,
यूँ बरबस याद दिलाता है
प्रेम फुहारों से भींगा मन, अब मधुर मिलन की आस किया,
मचला यूँ मन का आँगन ये, ज्यूँ बूँदों ने मधुमास किया।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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