नयनों के आलोड़न से
दो नयनों के आलोड़न से, बस इतना अहसास करा दो।
विरह वेदना साथी मेरे, अश्रु मेरे काव्य की भाषा,
बन जाऊँ ना कहीं यहाँ मैं, दुनिया में बस खेल तमाशा।
इस विरह लेखनी को मेरे, बस स्नेहिल आभास करा दो,
दो नयनों के आलोड़न से, बस इतना अहसास करा दो।
पग तल नाप रहे हैं रस्ते, निशा कहाँ है भोर कहाँ है,
एक जलन है नयन कोर में, क्या जाने मन ठौर कहाँ है।
इन नयनों के कोरों में बस, सपनों को मधुमास करा दो,
दो नयनों के आलोड़न से, बस इतना अहसास करा दो।
दर्द प्रेम है अश्रु स्नेह है, बैरन लगती यहाँ श्वास है,
बाती जैसा जल जाऊँगा, क्या मेरा यही इतिहास है।
मधुर प्रेम की एक फूँक से, सपनों का विन्यास करा दो,
दो नयनों के आलोड़न से, बस इतना अहसास करा दो।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30 जून, 2024
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