समर्पण के गीत
उम्र जिस गीत को गुनगुनाती रहे।
अर्थ हर शब्द का यूँ समर्पित रहे,
जिंदगी छाँव में मुस्कुराती रहे।
धूप राहों में अपने जो होगी कभी,
धूप को छाँव से हम सजाते रहें।
काँटे भी राहों में जो मिलेंगे कभी,
रास्तों से उन्हें हम हटाते रहें।
पथ बुहारें सदा जिंदगी के यहाँ,
पुष्प से उम्र जिसको सजाती रहे।
आ लिखें गीत हम तुम सुहाने यहाँ,
उम्र जिस गीत को गुनगुनाती रहे।
पुण्य के गीत मन में बसाए हुए,
वेद की पंखुरी से सजायें सदा।
हास परिहास से पथ निभाते हुए,
इक दूजे को दिल में बसायें सदा।
अंजुरी प्रीत की हो न खाली कभी,
प्रीत से अंजुरी जगमगाती रहे।
आ लिखें गीत हम तुम सुहाने यहाँ,
उम्र जिस गीत को गुनगुनाती रहे।
पंथ वो ही सुखद राम सीता चले,
जिंदगी में कभी लड़खड़ाए नहीं।
लाख कठिनाइयाँ राह आईं मगर,
निर्णयों में कभी हड़बड़ाए नहीं।
पंथ की धूल माथे लगायें सदा,
जो अँधियारों में पथ दिखाती रहे।
आ लिखें गीत हम तुम सुहाने यहाँ,
उम्र जिस गीत को गुनगुनाती रहे।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30अक्टूबर, 2023
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