कोई अधिकार नहीं

कोई अधिकार नहीं

माना कई उपासक तेरे अपना कोई और नहीं
होंगे लाखों बाँह पसारे अपना कोई ठौर नहीं
तिनका माना महासमर का तुमसा मैं अवतार नहीं
पर मेरे जीवन पर तुमको है कोई अधिकार नहीं।

सुबह किया आरंभ कहीं पर रात कहीं विश्राम किया
कभी दुपहरी को अपनाया संझा का बलिदान किया
पैरों ने कितने पग नापे तब आहों में गाया है
जितना जाना अपने मन को उतना ही अपनाया है
माना जगती के फेरों में तुमसा है व्यवहार नहीं
पर मेरे........।

जब-जब जैसा चाहा तुमने वैसा ही वरदान जिया
चाहे जितनी राह कठिन हो तुमने तो पहचान जिया
तुम धरती का उगता सूरज हम डूबे के प्रहरी हैं
सांध्य ढले इस जीवन पथ पर आँखें हम पर ठहरी हैं
तुम्हें मिले उपहार बहुत हमें कोई उपहार नहीं
पर मेरे...... ।

तुम सत्ता के शीश मुकुट, हम धरती पर रहने वाले
पुष्पादित पथ के राही, धूप-ताप हम सहने वाले
लोकतंत्र की परिभाषा में पर है अपना स्थान बड़ा
स्याही की इक बूँद गिरी जब सजे मुकुट का मान बढ़ा
लोकतंत्र है व्यवहारों का कभी यहाँ उपकार नहीं
पर मेरे जीवन.....। 

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06सितंबर, 2023



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